विस्तार से जाने हिमाचली धाम क्या है?|Himachali Dham kya hai?|हिमाचली धाम बनती कैसे है?|हिमाचली धाम इतनी प्रसिद्ध क्यों है?
विज्ञान चाहे जितनी भी तरक्की कर ले हम लोगों का खानपान और रहन सहन चाहे जितना मर्जी बदल जाए! भले ही हम 21वीं सदी की ओर तेज़ी बढ़ रहे हैं और पश्चिमी सभ्यता को अपनाते हुए हमारे खानपान में भी काफी बदलाव आया है, हम लोग आजकल चटपटे फास्ट फूड तथा अन्य राज्यों के बनने वाले व्यंजनों(भोजन) की ओर लालायित रहते हैं! होटलों की चकाचौंध और ग्रेवी युक्त खाने से कोसों दूर आज भी भारत में कई ऐसी जगह है जहां पर पारंपरिक व्यंजनों को बनाया जाता है!
अपनी खानपान की कला व संस्कृति को संजोए भारतवर्ष में एक राज्य ऐसा भी है जहां पर आज भी पारंपरिक खाने को अहमियत दी जाती है और खुशी के मौकों पर उस पारंपरिक खाने को बनाया और अन्य लोगों को भी खिलाया जाता है! भारत के उत्तर की ओर बसे सफेद बर्फ की चादर ओढ़े, पहाड़ों से ढके चारों ओर बड़े-बड़े देवदार व चीड़ के जंगलों से घिरे हुए बहुत ही शांत व सुंदर राज्य का नाम है..... हिमाचल प्रदेश!!
हिमाचल प्रदेश में 12 जिले हैं! लगभग सभी जिलों में आज भी शाकाहारी पारंपरिक हिमाचली धाम को बनाया जाता है! सिर्फ किन्नौर जिले में ही मांसाहारी खाना बनाया जाता है इस जिले में मांस और शराब का बहुत चलन है! आज मैं आपको इस पोस्ट पर हिमाचली धाम क्या है? हिमाचली धाम बनती कैसे है? इसकी महत्वता पूरे विश्व में क्यों है इस पर विस्तार से बता रहा हूंं....!!
इमेज: हिमाचली धाम |
हिमाचली धाम मटर पनीर रेसिपी|Himachali dham matar paneer recipe|बिलासपुरी धाम वाला मटर पनीर रेसिपी के लिए यहां 🔘क्लिक करें
हिमाचली धाम क्या है:
हिमाचल प्रदेश को देवी देवताओं की भूमि कहा जाता है! यहां के लोगों का रहन सहन काफी सादा, मिलनसार व शांतिपूर्ण है! हिमाचल के लोग खाने-पीने के बहुत शौकीन है और अक्सर विवाह- शादियों, भटी, जग व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में पारंपरिक खानपान का आयोजन करते हैं जिसे धाम कहते हैं! सभी जिलों में बनने वाली धाम को उस जिले के नाम के अनुसार ही जाना जाता है जैसे कांगड़ी धाम, मंडयाली धाम, चंब्याली धाम, केहलुरी (बिलासपुरी) धाम तथा हमीरपुरी धाम आदि प्रमुख हैं! हालांकि कुछ एक जिलों की धाम बहुत प्रसिद्ध है लेकिन बाहरी दुनिया के लिए इसे हिमाचली धाम के नाम से ही जाना जाता है!
हिमाचली धाम |
हिमाचली धाम इतनी प्रसिद्ध क्यों है?
हिमाचली धाम में बनने वाले खाने को पारंपरिक तरीके से बनाया जाता है! हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों में अलग-अलग तरह की धाम बनती है! हिमाचली धाम में बनने वाले व्यंजनों में राजमा मद्रा, घंडीयाली मद्रा, चने का मद्रा, आलू चना का मद्रा, सेेपो बड़ी का मद्रा, बूंदी वाली कढ़ी/पकोड़ा कढ़ी, कद्दू का मीठा, चने का खट्टा, बदाना, माह की दाल, चन्ना दाल, धोतवी दाल, मटर पनीर, इत्यादि बहुत मशहूर हैं ! हिमाचल के हर जिले में धाम को जमीन पर ही बनाया जाता है और धाम खिलाने के लिए सभी मेहमानों और लोगों को भी जमीन पर ही बिठाया जाता है! धाम को अत्यधिक स्वादिष्ट और मजेदार बनाने के लिए स्पेशल बोटी (खानसामों) का प्रबंध किया जाता है! धाम को स्वादिष्ट बनाने के लिए ज्यादा घी/तेल और मसालों का इस्तेमाल किया जाता है! धाम का खाना ज्यादातर लकड़ियों की आग पर बनने के कारण बहुत ही स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होता है! यही कारण है कि हिमाचली धाम बहुत प्रसिद्ध है और लोग इसे खाने के लिए बहुत खुश होते हैं और चाव के साथ धाम के व्यंजनों का लुत्फ लेते हैं!
हिमाचली धाम का लुत्फ उठाती महिलाएं |
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हिमाचली धाम को कैसे बनाया जाता है?
हिमाचली धाम को बहुत ज्यादा लोगों के लिए तैयार किया जाता है इसे तैयार करने में टीम वर्क की जरूरत होती है! धाम तैयार करने के लिए सभी लोगों का अपना अपना रोल होता है जिसमें खाना बनाने के लिए बर्तन इकट्ठे करना, खाना बनाने वालों का इंतजाम करना, बर्तन साफ करने का इंतजाम करना तथा धाम तैयार होने उपरांत उसे परोसने का कार्य करना प्रमुख हैं! इसके लिए निम्नलिखित अनुसार आप आसानी से समझ सकते हैं:
खाना बनाने के लिए बर्तनों तथा आग के लिए लकड़ियों का इंतजाम (पाण्डे- बरतन व समदा):
पाण्डे- बरतन:
धाम का खाना बनाने के लिए सबसे पहले बर्तनों का इंतजाम किया जाता है अक्सर जब भी घर में कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम हो तो आसपास के परिवारों या अन्य गांव वालों से खाना बनाने के लिए बर्तन इकट्ठा किए जाते हैं, इन बर्तनों में कड़ाही, चरोटी, बटलोही, पतीले, झारना, बाटी, कड़छी, छढोलू, खारे इत्यादि प्रमुख है! दाल पकाने के लिए बट लोही का इस्तेमाल किया जाता है व मीठा बनाने तथा फ्राई करने के लिए कड़ाही का इस्तेमाल किया जाता है तथा खाना परोसने के लिए दाल/सब्जी को बाटी में डालकर तथा चावल या पूरी को छढोलू में डालकर परोसा जाता है!
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धाम बनाने के बर्तन, बटलोही |
धाम बनाने के बर्तन, कड़ाही |
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समदा:
धाम का खाना ज्यादातर आग पर ही बनता है इसके लिए सूखी लकड़ियों की जरूरत पड़ती है जिन्हे अक्सर धाम या सांस्कृतिक कार्यक्रम होने से 20-25 दिन पहले छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर सूखने डाल दिया जाता है और उसका एक ढेर लगा लिया जाता है! हिमाचली खानपान की संस्कृति के अनुसार इन्हें समदा कहा जाता है!
धाम के लिए सूखी लकड़ियां, समदा |
खाना बनाने की जगह का इंतजाम (चर):
गांव में या 4-5 घरों के आसपास धाम का खाना बनाने के लिए एक स्थान का चयन किया जाता है जहां पर जमीन को खोदकर 10 -12 फुट लंबा और डेढ़ फीट चौड़ा तथा 2 फुट गहरा गड्ढा तैयार करते हैं! जमीन पर खोदे गए इस गड्ढे को ही चर कहा जाता है! चर पर एक किनारे से दूसरे किनारे तक बटलोही रखी जाती हैं, और लकड़ियां जलाकर खाना तैयार किया जाता है!
धाम बनाने की जगह, चर |
खाना बनाने वाले खानसामों का इंतजाम (बोटी):
हिमाचली धाम का खाना 500 से 1000 लोगों के लिए बनाया जाता है यद्यपि इतना सारा खाना तैयार करने के लिए स्पेशल खानसामें होते हैं जिन्हें हिमाचल में बोटी कहा जाता है! यह ब्राह्मण समुदाय के लोग होते हैं और पीढ़ियों से खाना बनाने का काम करते आ रहे हैं और गांव में उन्हीं लोगों (बोटियों) को धाम का खाना बनाने व परोसने के लिए बुलाया जाता है! धाम बनाने के लिए बोटी धोती और बनियान पहनकर तथा नंगे पांव रहकर खाना तैयार करते हैं! इनके पास खाना बनाने के लिए अपने कड़छ (laddle) तथा तैंथा (slicer/spetulla)होते हैं! धाम की कैपेसिटी के अनुसार बोटियों की संख्या 5 से 6 लोगों की टीम के रूप में होती है! अगर धाम बड़ी हो तो 2-3 बोटी पिछली रात से ही धाम की तैयारी में लग जाते हैं जिसमें एक हेड बोटी होता है और बाकी उनकी टीम के सदस्य के रूप में खाना तैयार करते हैं! खाना परोसने का काम हेड बोटी ही करता है तथा सहयोगी बोटी पंगत में बैठे लोगों को खाना परोसने का काम करते हैं!
धाम बनाने वाले खानसामा, बोटी |
मुख्य खानसामा, हेड बोटी |
पारंपरिक वेशभूषा में बोटी |
पारंपरिक वेशभूषा में बोटी |
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खाना बनाने में हेल्पर व बर्तन साफ सफाई का इंतजाम (पनियारा व काम्मे ):
पनियारा:
धाम का खाना बनवाने में और धाम समाप्त होने के बाद बर्तनों की साफ सफाई के लिए विशेष रुप से अलग से व्यक्ति का इंतजाम किया जाता है, जिसे हिमाचल में पनियारा बोलते हैं! यह व्यक्ति धाम शुरू होने से लेकर धाम के खत्म होने तक सारी सफाई की व्यवस्था भी संभालता है! यह धाम के अनुसार दो से तीन लोगों की टीम के रूप में होते हैं! पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पनियारा का काम धाम में पानी भरने का होता था क्योंकि पुराने समय में धाम के लिए पानी कुएं या बावड़ी से लाना पड़ता था जिस कारण तीन-चार लोगों की टीम पनियारा का काम करती थी! लेकिन आज पानी घर द्वार पर उपलब्ध है जिस कारण अब पनियारा, बोटी के साथ हेल्पर का काम करता है वह साथ में धाम के उपरांत साफ सफाई की व्यवस्था भी देखता है!
पन्यारा |
काम्मे |
काम्मे:
धाम का खाना बहुत से लोगों के लिए तैयार किया जाता है जिसके लिए टीम वर्क की जरूरत होती है अकेले चार पांच लोगों से यह संभव नहीं होता है इसलिए गांव में जब भी कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम की धाम हो तो हर एक घर से एक व्यक्ति धाम वालों के घर पर इकट्ठे होते हैं और धाम के कार्य में सहयोग करते हैं, इन्हें काम्मे (काम करने वाले) कहा जाता है! यह लोग कद्दू छीलना, प्याज, टमाटर काटना व अन्य छोटे-मोटे कार्यों में सहयोग करते हैं तथा धाम को परोसने के लिए बैठने की व्यवस्था के साथ-साथ पानी पिलाने के इंतजाम को भी संभालते हैं! यह लोग धाम वाले दिन सुबह से लेकर शाम तक छोटी से लेकर बड़ी हर व्यवस्था को सुचारू रूप से संभालते हैं!
धाम में काम करने वाले काम्मे |
धाम में काम करने वाले काम्मे |
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धाम तैयार होने उपरांत खाना परोसने का इंतजाम:
धाम का खाना तैयार हो जाने के बाद इसे मेहमानों तथा स्थानीय लोगों को खाना परोसने की व्यवस्था की जाती है जिसके लिए जमीन पर टाट पट्टी बिछाकर लोगों को लाइनों में बिठाकर खाना खिलाया जाता है! जिसे हिमाचल में बैंठ/पंगत बोलते हैं!ज्यादातर धाम का खाना बोटी द्वारा ही परोसा जाता है लेकिन बहुत बड़ी धाम होने पर अन्य लोग (काम्मे)भी सहायता करते हैं! लोगों को खाना खिलाने के लिए पत्तल (हरे पतो से बनी प्लेट) का इस्तेमाल किया जाता है! पत्तल को बनाने के लिए बरगद या टॉर के पेड़ का पत्ता इस्तेमाल किया जाता है जो कि जंगल में आसानी से उपलब्ध होते हैं! बांस के पेड़ की छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर उनसे बारीक तिलियां निकाली जाती है और इन हरे पत्तों को आपस में गोलाकार आकृति में जोड़ा जाता है! इस प्रकार खाना खाने वाली प्लेट का निर्माण किया जाता है! आजकल रेडीमेड पत्तल और थर्माकोल पत्तल का चलन बहुत ज्यादा है लेकिन गांव में अभी भी कुछ समुदाय के लोग इन पत्रों को बनाते हैं और मार्केट में आमतौर पर आसानी से मिल जाती हैं तथा हिमाचली धाम में इस्तेमाल की जाती है!अक्सर गांव में काफी खुली जगह मिल जाती है जरूरत पड़ने पर पड़ोसियों के आंगन खाना परोसने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं!शहरों इत्यादि में धाम को प्यार करने के लिए जगह चिन्हित होती है जहां पर शहरी लोग धाम तैयार करवाते हैं तथा वहीं पर परोसने का कार्य भी सहजता से हो जाता है!
धाम तैयार होने उपरांत खाना परोसने का इंतजाम |
धाम तैयार होने उपरांत खाना परोसने का इंतजाम |
धाम तैयार होने उपरांत खाना परोसने का इंतजाम |
दोस्तों आज के लिए इतना ही... मैंने, हिमाचली धाम कैसे तैयार की जाती है इसके ऊपर जितनी जानकारी थी उसके अनुसार लिखा है यद्यपि इसमें कोई जानकारी छूट गई हो तो कृपया कमेंट सेक्शन में मैसेज जरूर करें ताकि इसमें सुधार किया जा सके! अगर आपको हिमाचली धाम की जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट जरूर करें और आप हमारी परंपरागत हिमाचली धाम, हिमाचली खानपान व संस्कृति को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो शेयर जरूर करें, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
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Nice Information
जवाब देंहटाएंआपका धन्यवाद 🙏💞🙏
हटाएंBahut badiya.
हटाएंThanks dear
हटाएंI lov HP dham
जवाब देंहटाएंThanks a lot 🙏
हटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम मैसेज न डालें!