जानिए हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध मेले और त्यौहार | Famous Fairs and Festivals of Himachal Pradesh
राजसी परिदृश्य और प्राकृतिक नजारों से भरपूर हिमाचल प्रदेश भी विविध और कई रंगीन मेलों और त्योहारों के लिए मशहूर स्थान है! किसी भी देश व प्रदेश में होने वाले मेले व त्यौहार वहां की संस्कृति तथा मानवीय भावनाओं को जोड़ने का एक सरल माध्यम समझे जाते हैं! मेले और त्यौहार आपसी प्रेम व भाईचारे का संदेश के साथ साथ हमें सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से जोड़ने का काम करते हैं!
हिमाचल प्रदेश के लोग अपनी समृद्ध संस्कृति, सामाजिक विविधता और परंपरा को बहुत धूमधाम से मनाते हैं! इस राज्य में हर वर्ष बहुत सारे मेले और त्यौहार मनाए जाते हैं! प्रमुख हिंदू आबादी के अलावा, हिमाचल में बौद्ध, मुस्लिम और गद्दी, किन्नर, जादुन, तानोलिस, गुर्जर, पंगावल तथा लाहौली जैसी कुछ जनजातियां भी हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना एक या दो त्योहार होता है!
TOTAL COOKING द्वारा प्रस्तुत लेख में हम आपको हिमाचल प्रदेश के मेले तथा त्यौहार | Fairs and Festivals of Himachal Pradesh in Hindi, हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले मेले और त्योहारों की विस्तृत जानकारी बता रहे हैं! हिमाचल प्रदेश के निचले और ऊपरी क्षेत्रों में उनके अलग-अलग मेले और त्यौहार हैं जो विविध संस्कृतियों और परंपराओं का प्रतिबिंब हैं और जिन्हे आज भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है! हल्दा महोत्सव जैसे कई धार्मिक मेले और त्यौहार हैं! धन की देवी, शशिकर आपा को समर्पित, यह त्योहार नए साल का जश्न मनाने के लिए आयोजित किया जाता है और इसमें एक अलाव भी शामिल होता है जो समुदाय की एकता का प्रतीक है! दशहरा उत्तरी भारत का एक महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक त्योहार है!
हालांकि, कुल्लू घाटी में एक अलग दशहरा उत्सव देखा जा सकता है! कुल्लू दशहरा में रावण के पुतले को जलाने के बजाय भगवान रघुनाथ की पूजा की जाती है और कई नृत्य और संगीत प्रदर्शन किए जाते हैं। त्योहारों के साथ-साथ, मंडी में शिवरात्रि मेला, चंबा में मिंजर मेला और मणि महेश छरी यात्रा, सिरमौर में रेणुका मेला, कांगड़ा में व्रजेश्वरी मेला, ज्वालामुखी में ज्वालामुखी मेला, सुजानपुर टीरा में होली मेला जैसे कई धार्मिक मेले लगते हैं। और बिलासपुर पीपलो मेला में नैना देवी मेला, और 'मैरी' गुरुद्वारा मेला, चिंतपूर्णी मंदिर मेला, कामाख्या मंदिर मेला बड़े उत्साह और उत्साह के साथ आयोजित किया जाता है!
हिमाचली भी हर मौसम का बड़े हर्षोल्लास के साथ स्वागत करते हैं और देवताओं की पूजा करते हैं और विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाते हैं! वसंत ऋतु कुल्लू घाटी में फूलों के खिलने का प्रतीक है और इसके आगमन का जश्न मनाने के लिए कुल्लू के हडिंबा मंदिर में डूंगरी मेले का आयोजन किया जाता है! क्षेत्र में सुख-समृद्धि लाने के लिए मनाया जाने वाला चेत महोत्सव चंद्र वर्ष के पहले महीने के पहले दिन आयोजित किया जाता है! यह त्योहार कांगड़ा, हमीरपुर और बिलासपुर के क्षेत्रों में व्यापक रूप से मनाया जाता है!
किन्नौर में फुलाइच महोत्सव फूलों को देखने के बारे में है और सितंबर के महीने में मनाया जाता है! सिरमौर क्षेत्र में चैत्रौल महोत्सव अप्रैल और मई में मनाया जाता है, इसे चित्रों के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है! तिब्बती बौद्ध त्योहार, लाहौल और स्पीति में लोसार फरवरी या मार्च में नए साल का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है!
हिमाचल प्रदेश न केवल अपनी संस्कृति और धार्मिक उत्सवों को मनाता है बल्कि यहां पर हर वर्ष अलग-अलग समय में अपनी संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के पर्यटन उत्सव भी आयोजित किए जाते हैं! कुल्लू जिला के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मनाली में जनवरी माह में आयोजित होने वाला हिमाचल विंटर कार्निवाल, प्रदेश के लोकप्रिय त्योहारों में से एक है! इस कार्निवाल में संगीत, लोक नृत्य प्रदर्शन, भोजन उत्सव, नाटी और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से क्षेत्र की संस्कृति और परंपरा का प्रदर्शन किया जाता है और बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है! इसी तरह हर साल सर्दियों के मौसम में शिमला में आयोजित होने वाले आइस स्केटिंग कार्निवाल भी खासा लोकप्रिय है!
आधुनिकता के दौर व समय की बदलती तस्वीर के अनुसार हिमाचल प्रदेश के विभिन्न उत्सवों व मेलों को चार प्रकारों से विभक्त किया गया है:
1.धार्मिक मेले (Religious Fairs of Himachal Pradesh)
2.व्यापारिक मेले (Trade Fairs of Himachal Pradesh)
3.जिला/राज्य स्तरीय मेले (District/State Fairs of Himachal Pradesh)
4.अंतरराष्ट्रीय स्तरीय मेले (International fairs of Himachal Pradesh)
आइए सबसे पहले हम हिमाचल प्रदेश के विभिन्न उत्सवों व मेलों के बारे में जानेंगे और लेख के अंत में आपको हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले त्योहारों के बारे में भी बताया गया है!
हिमाचल प्रदेश के मेले तथा त्यौहार | Fairs and Festivals of Himachal Pradesh in Hindi
1.धार्मिक मेले (Religious Fairs of Himachal Pradesh):
धार्मिक मेलों का आयोजन ज्यादातर धार्मिक स्थलों व मन्दिर प्रांगण में किया जाता है! धार्मिक मेले हर क्षेत्र में अपने रीति रिवाज के हिसाब से मनाए जाते हैं! इसमें मन्दिरों के देवस्थलों में विभिन्न सम्प्रदायों के लोग एक साथ श्रद्धा व विश्वास से पूजा अर्चना करते हैं! नवरात्रों के समय मनाया जाने वाला मेला आकर्षण का केंद्र होता है तथा श्रद्धालुओं की अपार भीड़ को देखते हुए धार्मिक मेले का स्वरूप देखने योग्य होता है! काजल प्रदेश में आयोजित होने वाले धार्मिक मेलों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है:1.1 मारकण्डेय मेला- (Markandaya Fair Bilaspur)-
बिलासपुर के माकड़ी गांव में ऋषि मारकण्डेय के मन्दिर के समक्ष मनाया आने वाला यह मेला प्रतिवर्ष वैशाखी के समय तीन दिन तक आयोजित होता है! मान्यता है कि इस स्थान पर ऋषि मार्कंडेय का जन्म हुआ था और यहां पर निकलने वाले पवित्र जल से श्रद्धालु स्नान करके अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए प्रार्थना करते हैं!1.2 नयना देवी मेला (Nayna Devi Fair Bilaspur)-
बिलासपुर जिले में नवरात्रों के समय में होने वाला मेला, माता श्री नैना देवी को समर्पित है! हिंदू धर्म के अनुसार मान्यता है कि जब राजा दक्ष ने भगवान शिव को यज्ञ में नहीं बुलाया तो क्रोधित दक्ष की पुत्री सती ने हवन-कुण्ड में कूद कर अपने प्राणों की आहूति दे दी थी! कहां जाता है कि माता सती की आंख वाला हिस्सा स्थान पर गिरा था और यहां पर माता नैना देवी का मंदिर स्थापित किया गया! यहां से बिलासपुर तथा गोबिन्द सागर झील का मनोरम दृश्य दिखाई देता है!
1.3 मणिमहेश मेला (Mani Mahesh Fair Chamba)-
भरमौर से आगे भरमाणी (हड़सर) से हर साल मणिमहेश की यात्रा शुरू होती है यह चंबा मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर एक धार्मिक स्थल है! चारों ओर पहाड़ों से घिरे यहा पर एक सुन्दर झील है! झील के किनारे पर एक शिव मंदिर स्थित है जिसे शिव का घर कहा जाता है! कृष्ण जन्माष्टमी से 15 दिन बाद यहां मेला लगता है, जिसे मणि महेश यात्रा भी कहा जाता है!
1.4 गुग्गा पीर मेला (Gugga Pir Fair Bilaspur)-
यह मेला गुग्गा मन्दिर भटेड उपरली, बिलासपुर में गुग्गा पीर की याद में मनाया जाता है! लोगों का विश्वास है कि गुग्गा उनकी सर्प-दंश और अन्य भूत-प्रेतों से रक्षा करता है!
1.5 हाटकोटी मेला (Hatkoti Fair Rohru)-
इस मेले को दुर्गा माता की याद में हाटकोटी (रोहडू) में आयोजित किया जाता है! यहां पर एक मंदिर भी है जिसमें माता की अष्ठभुजा मूर्ति अद्वितीय है! इतिहास के अनुसार माना जाता है कि राजा विराट ने हाटकोटी मंदिर का निर्माण करवाया था और इस मंदिर का संबंध हिंदुओं के महाकाव्य महाभारत के पांडवों से भी जोड़ा जाता है! हर वर्ष यहां पर मेला आयोजित होता है और जिसे बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है!
1.6 रोहडू मेला (Rohru Fair)-
रोडू में आयोजित होने वाला यह मेला वैशाख (मध्य अप्रैल के आस पास) हिंदी में श्री गुरु देवता मंदिर के साथ लगते रोहड़ू बाजार में आयोजित किया जाता है! देवता शिकरु की शोभा यात्रा को धनटाली, जाखर दशलानी, गंगटोली और रोहडू में घुमाया जाता है और यह देवता के पांच आवास माने जाते हैं!
1.7 सिप्पी मेला (Sippy Fair Shimla)-
शिमला जिले में मनाया जाने वाला यह मेला सिप देवता को (शिव भगवान को समर्पित) समर्पित है और सिप्पी मेला के नाम से जाना जाता है! कहा जाता है कि हिमाचल प्रदेश के गठन से पूर्व यह मेला कोटी रियासत में राजा के पद ग्रहण के समय मनाया जाता था! परंपरा के अनुसार प्रथा थी कि राजा अपनी गद्दी ग्रहण करने से पूर्व सिप देवता की पूजा करता था!
1.8 कुफरी मेला (Kufri Fair Shimla)-
शिमला जिले में स्थित मशोबरा के समीप डगहोगी गांव में कुफरी मेले का आयोजन किया जाता है मान्यता है कि यह मेला, हिंदुओं के पवित्र महाकाव्य रामायण के उस सुअवसर को याद करने के लिए आयोजित किया जाता है, जब सीता माता को पुनः अयोध्या वापिस लाने हेतु हनुमान जी ने वानरों की सहायता से लंका को जोड़ने वाला सेतु बनाया था!
1.9 शूलिनी मेला (Shuline Fair Solan)-
दुर्गा माता की छोटी बहन शूलिनी देवी को समर्पित यह मेला हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला में मनाया जाता है! कहा जाता है कि शूलिनी देवी पूर्व बघाट रियासत के शाक की कुलदेवी रही है! सात बहनों में हिंगलाज देवी, जेठी ज्वालाजी, लूगासनी देवी, नयना देवी, नौग देवी, शूलिनी देवी और तारा देवी थीं और यह सातों बहने दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं!
1.10 बाबा बालक नाथ मेला (Baba Balak Nath Fair Deotsidh)-
हमीरपुर जिला के शाहतलाई के साथ लगते दियोट सिद्ध नामक स्थान में बाबा बालक नाथ (संन्यासी बालक) की चमत्कारी शक्ति को याद करने के लिए यह मेला हर वर्ष मनाया जाता है! धारणा है कि बाबा बालक नाथ का जन्म गिरिनार काठियावाढ (जूनागढ़ राज्य) में हुआ था! यह चमत्कारी बालक (बाबा बालक नाथ) शाहतलाई (कुछ भाग बिलासपुर) के आसपास घूमता और पशु-चराता रहता था! दियोट सिद्ध में एक पवित्र गुफा है जहां पर बाबा बालक नाथ ने सिद्धि प्राप्त की थी और यहां पर हजारों की संख्या में हर वर्ष बहुत बड़ा मेला आयोजित किया जाता है जिसमें उत्तरी भारत के बहुत ज्यादा संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां पर बकरे और बाबा जी का रोट (गेहूं के आटे का बना पकवान) भी चढ़ाए जाते हैं!
1.11 होला मोहल्ला मेला (Hola Mohalla Fair Sirmour)-
सिरमौर जिले के पोंटा साहिब में मनाया जाने वाला होली उत्सव काफी प्रसिद्ध है! इस मेले का आरम्भ गुरु गोबिन्द सिंह के पांवटा में रहने के साथ जोड़ा जाता है! गुरु के यहां रहने के दौरान 52 कवि उनके दरबार में रहते थे! वास्तव में होला मोहल्ला मेला आनन्दपुर साहिब (पंजाब) से शुरू हुआ जहां गुरु अपनी सेना के युद्ध कौशलों और उनकी दक्षता को देखते थे!
1.12 मेला बाबा बड़भाग सिंह (Mela Baba Barbhag Singh Una)-
यह मेला ऊना जिला के मैडी नामक स्थान ज्येष्ठ के महीने में मनाया जाता है और लगभग पूरा महीना चलता है! इस मेले में पंजाब से बड़ी संख्या में लोग आते हैं! बाबा बड़भाग सिंह शक्तियों के लिए विख्यात है और इसके बारे में अनेक लोक कथाएं प्रचलित हैं! ज्येष्ठ महीने के अति मास की अमावस्या को भी यहां पर मेला आयोजित होता है!
1.13 अन्य देवी मेले (Other Devi Fairs)-
हिमाचल प्रदेश, देवी के मेलों के लिए विख्यात है! ऊना जिले में चिंतपूर्णी, कांगड़ा में ज्वाला जी तथा ब्रजेश्वरी देवी के मेले भी बहुत प्रसिद्ध हैं! सभी मंदिरों में हर साल चैत्र और श्रावण महीने में मेलों का आयोजन भी किया जाता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने या मनोकामनाएं मांगने के लिए देवी दर्शन के लिए आते हैं!
हिमाचल प्रदेश के मेले तथा त्यौहार | Fairs and Festivals of Himachal Pradesh in Hindi
2.व्यापारिक मेले (Trade Fairs of Himachal Pradesh in Hindi):
व्यापारिक मेलों में आपको देश प्रदेश की झलक देखने को मिलती है! इन मेलों का आयोजन मात्र व्यापार करना ही नहीं होता है अपितु इनमें भी संस्कृति के दर्शन देखने को मिलते हैं! व्यापारिक मेलों में व्यापार के माध्यम से एक दूसरे को आपस में जोड़ने का और संपर्क बनाए रखने की महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते हैं! इन मेलों का आरम्भ राजाओं के अन्तर-रियासत क्रय-विक्रय व सोहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करने के उद्देश्य से हुआ था! ये मेले- रामपुर जिले का लवी मेला, बिलासपुर जिले का नलवाड़ी मेला व घुमारवीं शहर का नलवाडी मेला, मंडी जिले का सुंदरनगर नलवाड़ी और हमीरपुर में हमीर फेस्टिवल इत्यादि, हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध व्यापारिक मेले हैं! इन नलवाड़ी के पशु मेले को विश्व भर में ख्याति प्राप्त हैं और हर साल लोग इन नलवाड़ी मेला में बैलों की खरीद-फरोख्त करते हैं!2.1 बिलासुपर का नलवाड़ी मेला (Nalwari Fair of Bilaspur)-
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला में मनाया जाने वाला यह मेला मेला सामान्यत: हर वर्ष 17 से 23 मार्च तक मनाया जाता है और बैलों के व्यापार के लिए यह पशु व्यापार मेला के नाम से भी मशहूर है और खासा प्रसिद्ध भी है, जो आस-पास के इलाके में पशु व्यापार विशेषकर बैलों के लिए प्रसिद्ध है! राजाओं के समय से ही आयोजित होने वाला यह मेला इस समय राज्य स्तरीय मेले के रूप में मनाया जाता है! मेले का शुभारम्भ परम्परागत ढंग से लकड़ी की खूंटी काटने और बैल पूजन के साथ शुरू होता है! 1962 तक यह मेला सांडू मैदान में मनाया जाता रहा! भाखड़ा बांध बनने से सांडू मैदान के गोबिन्द सागर झील में डूबने के बाद यह मेला लुहणु मैदान में मनाया जाता है! भारत के नामी-गिरामी व्यापारी और पशु मेले के साथ-साथ कुछ स्थानीय दुकानें भी लगाई जाती हैं! बड़े बड़े डोम और झूले लगाए जाते हैं साथ ही साथ ‘छिंज’ का आयोजन होता है जिसमें पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल के पहलवान भाग लेते हैं! अन्तिम कुश्ती जीतने वाले को चाँदी का गुर्ज (हनुमान की गदा का प्रतीक) और नगद पुरस्कार भी दिया जाता है! मेले के दौरान पशुओं का क्रय-विक्रय के साथ-साथ अन्य वस्तुओं की भी जमकर खरीदारी होती है!
2.2 सुन्दर नगर का नलवाड़ी मेला (Nalwari Fair of Sunder Nagar)-
मंडी जिला के सुंदर नगर नामक जगह पर आयोजित होने वाला यह मेला सुंदरनगर नलवाड़ी मेला के नाम से उत्तरी भारत में बहुत प्रसिद्ध है! यह मेला 9 से 17 चैत्र मास (मार्च) तक मनाया जाता है! यह प्रदेश का सबसे बड़ा पशु मेला है और बिलासपुर नलवाड से कई गुना बड़ा मेला है इस पशु मेले में जिला मंडी, कांगडा, बिलासपुर तथा हमीरपुर तक के कृषक बैल खरीदने आते हैं! यह समझा जाता है कि यह सब पुरातन पशु मेला है और यहां पर बहुत सारी किस्म के बैलों की खरीद-फरोख्त की जाती है! बिलासपुर, भंगरोटू की नलवाड बाद में आरम्भ हुई! ऐसा भी विश्वास है कि राजा चेतसेन के संग राजा नल सुन्दर नगर (सुकेत) आए! राजा नल ने परामर्श दिया कि लोगों की आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए अन्न व्यापार मेला आरम्भ किया जाए! राजा चेतसेन ने यह मेला आरम्भ किया और इसका नाम नलवाड़ रखा! यह मेला मंडी जिला में बहने वाली लिंडी खड्ड में एक किलोमीटर से ऊपर के क्षेत्र में मनाया जाता है! दूर-दूर तक खड्ड क्षेत्रों में पशु-ही-पशु दिखाई देते हैं! मेले में छ: सात दिनों तक खड्ड तथा खेतों में पशु-ही-पशु रहते है और सैकड़ों किसान भाइयों की भीड़ मोलभाव करती नजर आती है!
2.3 लवी का मेला (Lavi Fair)-
रामपुर में मनाया जाने वाला यह हिमाचल प्रदेश का एक और व्यापारिक मेला है जो हर वर्ष 11 से 13 नवंबर को आयोजित होता है! इस मेले में बड़ी व्यापारिक मण्डी लगती है जिसमें ऊनी चादरों तथा शाल-दोशालों का अत्यधिक व्यापार इसे लवी अर्थात ऊन का नाम दिया गया है! इस मेले में चिलगोजा, अखरोट, बादाम काला जीरा व बिक्री होती है! मेले में लोकनृत्य और कई प्रकार के रंगारंग कार्यक्रम भी देखने को मिलते हैं जिनमें माला नृत्य मेले का सर्वाधिक आकर्षण होता है!
हिमाचल प्रदेश के मेले तथा त्यौहार | Fairs and Festivals of Himachal Pradesh in Hindi
3.जिला/राज्य स्तरीय मेले (District/State Fairs of Himachal Pradesh in Hindi):
जिला/राज्य स्तरीय मेले जिला/राज्य स्तर पर मनाये जाते हैं! ये मेले सरकार द्वारा अनुमोदित हैं! इसमें सभी सुविधाएं सरकार द्वारा प्रदान की जाती हैं इनमें सरकार की ओर से समूची व्यवस्था संबंध, चिकित्सा सुविधा, कानून व्यवस्था, मनोरंजन क्रिया-कलाप तथा दूसरी अन्य अन्तर्राज्यीय प्रतियोगिता तथा सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए दूसरे प्रदेशों के कलाकारों को भी बुलाया जाता है! मेलों में सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन किया जाता है जिसमें रात्रि के समय रंगारंग कार्यक्रम और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं! इन जिला/राज्य स्तरीय मेलों में प्रमुख मिले निम्नलिखित हैं:मिज्जर मेला (चम्बा)
शिवरात्रि (मंडी)
दशहरा (कुल्लू)
लबी(रामपुर)
हिमाचल प्रदेश के मेले तथा त्यौहार | Fairs and Festivals of Himachal Pradesh in Hindi
4. अंतरराष्ट्रीय स्तरीय मेले (International fairs of Himachal Pradesh in Hindi):
अंतर्राष्ट्रीय मेले घोषित किए गए मेलों में मिंजर मेला, लवी मेला, रेणुका मेला, दशहरा मेला और शिवरात्रि मेला शामिल हैं!चम्बा मिंजर मेला उत्सव की विशेषताएं- Features of Chamba Minjar Mela Festival:
मिंजर मेला 935 ई. में त्रिगर्त (अब कांगड़ा) के शासक पर चंबा के राजा की विजय के उपलक्ष्य में, हिमाचल प्रदेश के चंबा घाटी में मनाया जाता है! ऐसा कहा जाता है कि अपने विजयी राजा की वापसी पर, लोगों ने उसे धान और मक्का की मालाओं से अभिवादन किया, जो कि समृद्धि और खुशी का प्रतीक है! इस मेले की घोषणा मिंजर के वितरण द्वारा की जाती है, जो पुरुषों और महिलाओं द्वारा समान रूप से पोश चंबा जिले के प्रसिद्ध मेले में से एक है! यह त्योहार हर साल जुलाई के महीने में मनाया जाता है!•मेले के मुख्य आकर्षण प्रदर्शनी, साहसिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम हैं!
•मिंजर मेला एक सप्ताह तक चलने वाला उत्सव है!
•इस मेले के दौरान स्थानीय कलाकारों द्वारा गाए गए भावपूर्ण और पारंपरिक कुंजारी मल्हार को कोई भी सुन सकता है!
•मेले के प्रमुख उत्सव हिमाचल प्रदेश के चंबा शहर में स्थित 'चौगान' नामक स्थान पर मनाए जाते हैं!
•मिंजर मेले को हिमाचल प्रदेश के राज्य मेलों में से एक घोषित किया गया है और इस प्रकार, यह मीडिया द्वारा व्यापक रूप से कवर किया गया है!
•यह हिंदू महीने श्रावण के दूसरे रविवार को आयोजित किया जाता है।
त्योहार की तिथियां/महीने
मिंजर मेला हर साल जुलाई / अगस्त के महीने में आयोजित किया जाता है!
शिवरात्रि मंडी मेला उत्सव की विशेषताएं- Features of Shivratri Mandi Mela Festivals:
हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी में मनाया जाने वाला शिवरात्रि मेला बहुत प्रसिद्ध है और यह मेला फरवरी माह में शिवरात्रि के दिन मंडी में लगता है! शिवरात्रि का मेला (Shivratri Fair)- हिमाचल में शिवरात्रि के दिन अनेक स्थानों पर छोटे-छोटे मेले लगते हैं परन्तु मण्डी का शिवरात्रि मेला बहुत प्राचीन काल से चलता आ रहा है! इस मेले का सम्बन्ध मण्डी के राजा अबरसेन से है क्योंकि सर्वप्रथम उन्होंने ही मण्डी में शिवलिंग की स्थापना की थी तथा तब से शिवरात्रि मेला मण्डी में शुरू हुआ था!शिव हिमाचल प्रदेश के प्रमुख देवता हैं। पूरे हिमाचल प्रदेश के मंदिरों में भी इस त्योहार को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है!
•यह मेला एक सप्ताह तक चलता है, बड़ी मस्ती और उल्लास के साथ। इस अवसर पर लोग सैकड़ों देवी-देवताओं को अपने रथों में लाते हैं। मधुर धार्मिक गीतों के बीच भक्त उन्हें कंधों पर उठाकर ले जाते हैं!
•मंडी कस्बे के प्रसिद्ध भूतनाथ मंदिर में लोग भगवान शिव को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं!
•यह एक राज्य मेला है!
त्योहार की तिथियां/महीने
शिवरात्रि मेला हर साल फरवरी के महीने में आयोजित किया जाता है!
कुल्लू दशहरा महोत्सव की विशेषताएं- Features of Kullu Dussehra Festivals:
कुल्लू जिला में मनाया जाने वाला दशहरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत प्रसिद्ध है और सर्दियों के शुरुआती दिनों यानी कि अक्टूबर महीने में मनाए जाने वाले इस महोत्सव में हर साल लाखों की संख्या में देशी व विदेशी सैलानी कुल्लू दशहरा देखने को हंसते हैं! हालांकि यह त्यौहार देश के सभी भागों में मनाया जाता है लेकिन कुल्लू जिले मैं मनाया जाने वाला दशहरा बहुत प्रसिद्ध है! जब यह त्यौहार कुल्लू की तुलना में सभी भागों में समाप्त हो जाता है तो यह त्यौहार शुरू होता है और 9 दिनों तक चलता रहता है!ऐसा कहा जाता है कि जब कुल्लू के राजा को किसी ऋषि ने श्राप दिया तो उसने अपने सेवक से कहा कि अयोध्या से रघु की मूर्ति ले लो, लेकिन जब अयोध्या के लोग देखते हैं कि मूर्ति मंदिर में नहीं है, तो उन्होंने उसे खोजा और पाया कुल्लू की घाटी में मूर्ति के साथ लोग। इसलिए उन्होंने अयोध्या वापस ले जाने का फैसला किया लेकिन वे नहीं ले पा रहे हैं क्योंकि यह बहुत भारी हो जाता है और जब इसे कुल्लू ले जाया जाता है तो यह आसान हो जाता है उसके बाद यह त्योहार भगवान रघुनाथ की याद में शुरू होता है
•त्योहार का मुख्य आकर्षण स्थानीय देवी और कुल्लू के देवता की यात्रा है!
•मेला 1651 में ढालपुर मैदान में शुरू हुआ था!
•कुल्लू दशहरा देश के अन्य हिस्सों में मनाए जाने वाले दशहरे से थोड़ा अलग है!
•यह एक सप्ताह तक चलने वाला त्योहार है!
•कुल्लू दशहरा के उत्सव का केंद्र कुल्लू में ढालपुर मैदान में आयोजित होता है!
•यह महोत्सव उगते चंद्रमा के दसवें दिन यानी विजयादशमी से शुरू होता है
त्योहार की तिथियां/महीने
कुल्लू दशहरा हर साल अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है!
रेणुका मेला, सिरमौर महोत्सव की विशेषताएं- Features of Renuka Mela, Sirmaur Festivals:
रेणुका मेला (Renuka Fair)- सिरमौर जिले में मनाया जाने वाला रेणुका मेला माता रेणुका की याद में आयोजित होता है! जमदग्नि ऋषि (परशु राम के पिता) का राजा सहस्र्वाजुन ने वध कर दिया था! इसके पश्चात् जमदग्नि की पत्नी रेणुका ने झील में कूदकर आत्महत्या कर ली थी! दूसरी मान्यता है कि परशु राम ने अपनी माता रेणुका का पिता जमदग्नि के आदेश पर वध कर दिया था!
•आज भी लोग हजारों की संख्या में कार्तिक माह में एकादशी के दिन मेले में आकर यहां पूजा-अर्चना करते हैं!
•झील का आकार पहाड़ी के ऊपर से सुप्त महिला जैसा प्रतीत होता है!
•यह सिरमौर जिले के प्रसिद्ध मेले में से एक है!
•यह त्यौहार रेणुका में रेणुका झील के तट पर मनाया गया!
•यह हर साल लाखों पर्यटकों द्वारा भ्रमण किया जाता है!
•यह पर्व सबसे पहले महाभारत काल में मनाया जाता था यह त्यौहार परशु राम की माता देवी रेणुका की याद में और उनके बलिदान के लिए मनाया जाता है!
•जब यह त्योहार शुरू होता है तो भगवान परशु राम की मूर्ति को मंदिर के रूप में ले लिया जाता है और रेणुका झील में स्नान किया जाता है और अंतिम दिन मंदिर में वापस ले जाया जाता है।
•रात्रि में स्थानीय कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम, हिमाचल के लोक नृत्य भी प्रस्तुत किया गया!
•यहां एक झील और एक बड़ा चिड़ियाघर भी है जिसमें बाघ और भालू जैसे बहुत सारे जानवर मौजूद हैं!
त्योहार की तिथियां/महीने
रेणुका मेला (Renuka Fair) हर साल नवंबर के महीने में आता है!
लवी मेला, रामपुर बुशहर महोत्सव की विशेषताएं-Features of Lavi Mela, Rampur Bushahr Festivals:
यह देश के सबसे पुराने व्यापार मेले में से एक है जिसे 16वीं शताब्दी में बुशेर के राजा और तिब्बत के बीच कहा गया था! यह मेला हर साल अक्टूबर के महीने में आता है और कई दिनों तक चलता है! जब सबसे पहले यह मेला शुरू हुआ तो बुशर के राजा केहरी सिंह और तिब्बत के राजा ने घोड़ों और अन्य हथियारों का आदान-प्रदान किया! लेकिन अब एक दिन जब रामपुर के लोग सूखे मेवे बेचते हैं, तो अन्य क्षेत्रों के लोग और विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्र के लोग इस मेले में घोड़ों, खच्चरों, पश्मीनाओं, बछड़ों, याक, चिलगोजा, नमदास, पट्टियों के साथ भाग लेते हैं!•रामपुर का लावी मेला शिमला जिला और राज्य का सबसे महत्वपूर्ण मेला है!
•राज्य में उत्पादित ऊनी, कच्चे अर्ध-निर्मित ऊन और अन्य सूखे मेवे बेचने के लिए लाए जाते हैं!
•यह तीन सौ साल पुराना मेला है और एक राजकीय मेला भी!
•ऊनी कपड़े और अन्य चीजें का जमकर व्यापार होता है! •रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है!
•बुशहर शिमला से लगभग 150 किमी दूर है!
त्योहार की तिथियां/महीने
लवी मेला हर साल 25 मार्च कार्तिक (नवंबर) पर आयोजित एक प्रसिद्ध व्यापारिक मेला है!
पाठकों की जानकारी के लिए बता दें कि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला के घुमारवीं में चैहड़ नामक स्थान पर उत्तरी भारत के सबसे बड़े दंगल का आयोजन हर वर्ष आयोजित किया जाता है इस दंगल में पूरे भारतवर्ष के नामी गिरामी पहलवान हिस्सा लेते हैं इसका आयोजन स्थानीय कमेटी द्वारा जनता तथा प्रशासन के सहयोग से किया जाता है! घुमारवीं नलवाड़ी मेला के उपरांत शहर दंगल का आयोजन अप्रैल महीने के मध्य में किया जाता है! विजेता पहलवानों को लाखों की राशि वितरित किए जाती है तथा भारत केसरी, हिमाचल केसरी को लगभग लाख रुपए से ऊपर नगद राशि (विजेता /उप-विजेता पहलवान को) तथा चांदी व पीतल के गुर्ज प्रदान किए जाते हैं! इस दंगल का आयोजन लखदाता पीर के नाम पर किया जाता है!
टोटल कुकिंग भारतीय शाकाहारी/मांसाहारी व्यंजन, हिमाचली व्यंजन, एक्सप्लोर हिमाचल, बेकरी, कॉन्टिनेंटल, सामान्य जानकारी आदि के बारे में है! हम आपको सीधे हमारे किचन से लघु वीडियो और स्टेप बाय स्टेप फोटो रेसिपी प्रदान करते हैं! दिलचस्प रेसिपी सीखें और अपनी प्रतिक्रिया हमारे साथ साझा करें!
TOTAL COOKING is all about Indian veg/non- veg recipes, Himachali Dishes, Explore Himachal, Bakery, Continental, General Information etc. We provide you with short videos and step by step photo recipes straight from our kitchen. Learn interesting recipes and share your feedback with us.
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम मैसेज न डालें!