कांगड़ा किले का इतिहास हिन्दी में | History of Kangra Fort in hindi HP | Kangra Fort History Himachal Pradesh| देखें कांगड़ा किले की खूबसूरत तस्वीरें
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कांगड़ा क़िला |
हिमाचल प्रदेश के मशहूर पर्यटक स्थल धर्मशाला से करीब 20 किमी दूर स्थित कांगड़ा जिले में भारत के सबसे पुराने किलों में से एक कांगड़ा किला स्थित है!आज हम आपको हिमाचल प्रदेश में स्थित कांगड़ा किले का इतिहास हिन्दी में विस्तार पूर्वक बता रहे हैंं!
कांगड़ा किला भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है और यह शिवालिक पहाड़ियों के पास 463 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है! दुर्ग की दीवारें परिधि में 4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है और नदी की सत्तह से 350 फुट तक ऊंची है!
किले में छह दरवाजे लांघकर पहुंचना पड़ता है! सबसे पहले रणजीत सिंह द्वार है! इसके बाद आहिनी दरवाजा, आमीरी दरवाजा, जहांगीर, अंधेरी व दर्शनी दरवाजा है। इन दरवाजों को लांघने के बाद ही मुख्य किले के परिसर में पहुंचा जा सकता है!
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कांगड़ा किले का मुख्य द्वार |
हिमाचल प्रदेश में स्थित कांगड़ा किला बहुत चौड़ी व ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है। किले के ऊपरी छोर से चारों ओर देखने पर बहुत सुंदर नजारा दिखाई पड़ता है और साथ ही मांझी और बाणगंगा जैसी नदियों का संगम का सुंदर नजारा भी किले से दिखाई देता है! इसके अलावा अगर आप खुशकिस्मत हैं तो आपको सफेद बर्फ की चादर ओढ़े धौलाधार का खूबसूरत नजारा भी देखने को मिल सकता है!
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मुख्य दरवाजा |
कांगड़ा किला को लेकर कई कहानियां हैं जो कि किले में हुई जबरदस्त लूट, विश्वासघात और अंततः किले के विनाश से जुड़ी हुई है! इतिहास के पन्नों में लिखे अनुसार कहा जाता है कि किले का निर्माण कटोच वंश के महाराजा सुशर्मा चंद्र ने करवाया था। हमें कटोच वंश का पता प्राचीन त्रिगर्त राज्य से चलता है जिसका जिक्र महाभारत महाकाव्य में बताए गए अहम जनपद के रूप में किया गया है।
त्रिगर्त राज्य के राजा सुशर्मा चंद्र ने महाभारत के युद्ध में अहम किरदार निभाया था जब उन्होंने अर्जुन का ध्यान भटका दिया और इस बीच द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह बनाया जिससे अर्जुन के बेटे अभिमन्यु को मारा गया!
महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार के बाद राजा सुशर्मा चंद्र के वंशजों ने अपनी राजधानी कांगड़ा को बना लिया। सबसे पहले कश्मीर के राजा श्रेष्ठ ने 470 ई॰ में इस क़िले पर हमला किया! एक समय था जब कांगड़ा किला अपार धन के लिए मशहूर था! यही वजह थी कि इस पर महमूद गजनवी, मोहम्मद बिन तुगलक, फिरोज शाह तुगलक, अकबर आदि मुगल शासकों ने कई बार हमले किए और किले को अनेकों बार लूटा!
1789 में आखिरकार कटोच वंश के राजा संसार चंद द्वितीय ने मुगलों से अपने प्राचीन किले को जीता लेकिन 1809 में महाराजा रणजीत सिंह ने किले पर कब्जा कर लिया। 1846 तक यह सिखों की देखरेख में रहा और उसके बाद यह अंग्रेजों के अधीन हो गया!एक ब्रिटिश गैरीसन ने 4 अप्रैल 1905 को भूकंप में भारी क्षति होने तक किले पर कब्जा कर लिया था!
पुराने कांगड़ा के पास एक पहाड़ी की चोटी पर प्रसिद्ध जयंती माता मंदिर है। मंदिर का निर्माण गोरखा सेना के जनरल, बड़ा काजी अमर सिंह थापा द्वारा किया गया था। इसके अलावा प्रवेश द्वार के पास एक छोटा संग्रहालय है जो कांगड़ा किले के इतिहास को प्रदर्शित करता है!
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विडियो देखें:
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जयंती माता मंदिर |
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किले से सटे कांगड़ा जिला के शाही परिवार द्वारा संचालित महाराजा संसार चंद कटोच संग्रहालय भी हैै, जिसमें कटोच वंश के शासकों एवं उनके मध्य हुए युद्ध के दौरान उपयोग में लाई गई सामग्री, बर्तन, सिक्के ,पेंटिंग्स ,अभिलेख एवं हथियारों को रखा गया है! महाराजा संसार चंद कटोच संग्रहालय, किले और संग्रहालय के लिए ऑडियो गाइड भी प्रदान करता है और किले केेेे परिसर मेंं एक कैफेटेरिया भी है। किले के परिसर में एक ब्रिटिश कब्रिस्तान भी स्थित है!
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संसार चंद कटोच संग्रहालय |
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ब्रिटिश कब्रिस्तान |
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ब्रिटिश कब्रिस्तान |
कांगड़ा किला, हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा मुख्यालय से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और जिला का मशहूर शहर धर्मशाला, कांगड़ा शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर है!
1. कांगड़ा किले का निर्माण व इतिहास : Construction and History of Kangra Fort
पुरातन काल में कांगड़ा नगरकोट एवं त्रिगर्त नाम से भी लोकप्रिय था! त्रिगर्त साम्राज्य निचली ब्यास बाणगंगा घाटी में फैला हुआ था पंजाब के अंतर्गत आने वाले पहाड़ी राज्यों में से कांगड़ा सबसे प्राचीन और शक्तिशाली था और यह पूर्व इस्लामिक काल मे जालंधर राज्य का ही एक भाग था!
भारत के उत्तरी भागों को मुस्लिम शासकों द्वारा जीत लेने के पश्चात जब पंजाब के मैदानी क्षेत्रों पर मुस्लिम शासकों का अधिकार हो गया तो जालंधर के शासकों ने कांगड़ा की ओर कूच कर लिया और टूटे हुए साम्राज्य को कांगड़ा से गठित करने का प्रयास किया!कांगड़ा दुर्ग अपने सामरिक अवस्थी, वैभव और अभेद्यता के लिए जाना जाता है!
मांझी और बाणगंगा नदियों के संगम पर एक छोटी पहाड़ी पर शिलाखंड के रूप में स्थित दुर्ग संपूर्ण कांगड़ा घाटी का पर्यवेक्षण करता दिखता है!
यह पहाड़ी एक प्राकृतिक दुर्ग के रूप में भी उभरकर आती है! दुर्ग की दीवारें परिधि में 4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है और नदी की सत्तह से 350 फुट तक ऊंची है जो पुराने कांगड़ा की और एक छोटे भूमि भाग को छोड़कर तीनों दिशाओं में पहाड़ी से घिरी हुई हैै! दुर्ग परिसर में एक छोटे आंगन से प्रवेश किया जा सकता है, जिसके दोनों और एक दूसरे से सटे हुए द्वार हैं जिन्हें सीख अधिग्रहण के काल से फाटक कहा जाता हैै! एक संकरा रास्ता दुर्ग के आहनि और अमीरी दरवाजे से होकर आंतरिक भाग की ओर जाता है, जिसका निर्माण कांगड़ा के प्रथम मुगल बादशाह जहांगीर के समय में हुआ है!
आगे पहाड़ी की ओर जाते हुए दर्शनी दरवाजा है, जिनके दोनों और द्वार शाखाओं पर गंगा और यमुना देवी की आकृतियां अंकित है! यह दरवाजा मंदिर परिसर के लिए मुख्य प्रवेश द्वार है! मध्य भाग के धार्मिक परिसर में विभिन्न धार्मिक स्थल हैं, जिनमें लक्ष्मी नारायण मंदिर, शीतला देवी मंदिर और अंबिका देवी आदि प्रमुख मंदिर हैं इन मंदिरों से कुछ ही दूरी पर कई इमारतें जैसे शीश महल, कैदियों की जेलें और निवास स्थल, विशालकाय आंगन के अवशेष स्थित है!
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दर्शनी दरवाजा |
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अंबिका देवी मंदिर |
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लक्ष्मी नारायण मंदिर |
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गंगा और यमुना देवी |
सबसे पहले कश्मीर के राजा श्रेष्ठ ने 470 ई॰ में इस पर हमला किया!सदियों से अभेद्य माना जाने वाला दुर्ग 1009 ईस्वी में महमूद गजनवी द्वारा अपने अधिकार में ले लिया गया! 1337 में यह दुर्ग दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने छीन लिया उसके पश्चात एक बार अकबर ने इसको जीतने का असफल प्रयास किया और फिर उसके बेटे और उत्तराधिकारी ने इस दुर्ग पर कब्जा कर यहां से पहाड़ी राज्यों की मुगलों के विरुद्ध दमन पर नियंत्रण करने के लिए अपना राज्यपाल नियुक्त कर लिया! यद्यपि मुगलों के शाही स्वामित्व के अपवाद में यह दुर्ग कांगड़ा के कटोच राजपूत शासकों के अधीन रहा जो कि त्रिगर्त की प्राचीन जनजाति के वंशज होने का दावा करते हैं! 18 वीं शताब्दी के दूसरे अर्ध-भाग में मुगल शासन का पतन हो गया और राजा संसार चंद द्वितीय दुर्ग को जीतने में सफल हो गया और उसके साथ ही कांगड़ा किला का स्वर्णिम युग भी प्रारंभ होता है! उसकी महत्वाकांक्षा से गोरखाली और पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह जिसने अंत में 1809 ईस्वी में कांगड़ा को जीत लिया के साथ-साथ दूसरे कई राज्यों से उसका विरोध हो गया रणजीत सिंह के समय से कांगड़ा में सिख शासन का प्रादुर्भाव हो गया!
बाद में अंग्रेजी सेनाओं ने सिखों के साथ ही रावी घाटी को जीतकर 1845 ईसवी से 1905 तक चंबा के क्षेत्रों में अपना वर्चस्व कायम किया! 1905 ईसवी, हिमाचल प्रदेश में आए विनाशकारी भूकंप के कारण यह दुर्ग भी तहस-नहस हो गया और खंडहर में तब्दील हो गया! 1909 में कांगड़ा के भग्न दुर्ग को केंद्रीय संरक्षित स्मारक के रूप में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में लाया गया!
2. कांगड़ा किले की वास्तुकला – Architecture of Kangra Fort
कांगड़ा किले का प्रवेश द्वार एक छोटे से गलियारे से होकर जाता है जिसमे दो गेट लगे हुए है जिसको फाटक कहते हैं! इस गेट पर मौजूद शिलालेख से पता चलता है कि यह सिख काल के बाद का है! इसके बाद एक लम्बा और सकरा रास्ता आहनी और अमीरी दरवाजा से होते हुए शानदार किले के शीर्ष की ओर जाता है! बाहरी द्वार से लगभग 500 फीट की दूरी पर यह मार्ग एक तीखे कोण पर एक मोड़ लेता है और जहाँगीरी दरवाजा से होकर निकलता है, जिससे पूरी तरह से इस्लामिक इमारत दिखाई देती है और इसके नाम से यह लगता है कि 1620 ई में किले पर विजय प्राप्त करने के बाद जहाँगीर द्वारा इसको बनवाया गया होगा! एक सफेद संगमरमर का स्लैब जो एक फारसी शिलालेख था उसके दो टुकड़े 1905 में बरामद हुए थेे!
किले के अंदर एक पानी का कुआं भी स्थित है!
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प्रवेश द्वार के पास शंकरा मार्ग |
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आहिनी दरवाजा |
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अमीरी दरवाज़ा |
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जहाँगीरी दरवाजा |
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पानी का कुआं |
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कांगड़ा किले की दीवारों पर जगह जगह देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, हालाँकि अब कांगड़ा का यह किला ज्यादातर खंडहर हो चुका है! लेकिन एक बार वहाँ खड़े होने वाले शाही ढांचे की परिकल्पना आसानी से की जा सकती है! कांगड़ा किले में जो एक बहुत खूबसूरत संरचना है इसकी छत से भी आपको चारों ओर सुंदर व बर्फ की सफेद चादर ओढ़े धौलाधार का शानदार नजारा देखने को मिलता है!
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किले से धौलाधार पर्वत का नजारा |
कांगड़ा किला आने वाला प्रत्येक पर्यटक कांगड़ा किले के अंदर बनी हुई वॉच टावर तथा भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर, और आदिनाथ मंदिर , अंधेरी दरवाजा को देख सकते हैं!
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किले की विशालकाय दीवारें |
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आदिनाथ मंदिर |
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किले के अंदर पड़े अवशेष |
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वॉच टावर |
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अंधेरी दरवाजा |
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पानी निकासी की नालियां |
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कैदियों की जेलें |
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किले के अंदर विशाल आंगन |
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भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर
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देवी देवताओं की मूर्तियां |
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देवी देवताओं की मूर्तियां |
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आदिनाथ |
3. कांगड़ा के आसपास घूमने की आकर्षक जगह – Attractive places to visit around Kangra
ज्वालामुखी मंदिर
अंबिका देवी मंदिर
बृजेश्वरी मंदिर
जयंती मंदिर
बगलामुखी मंदिर
लक्ष्मी नारायण मंदिर और आदिनाथ मंदिर
महाराजा संसार चंद कटोच संग्रहालय
भागसुनाथ, मैकलोडगंज धर्मशाला
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, धर्मशाला
4. कांगड़ा किले के लिए खुलने का समय: Opening time for Kangra Fort
कांगड़ा किला सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक सप्ताह के सभी दिन खुला रहता है!
5. कांगड़ा किला में प्रवेश शुल्क : Entrance fee in Kangra Fort
साधारण शुल्क प्रति व्यक्ति (भारतीय): ₹20
गाइड के साथ प्रति व्यक्ति (भारतीय): ₹150
गाइड के के साथ प्रति व्यक्ति (विदेशी): ₹300
6. कांगड़ा किला घूमने का सबसे अच्छा समय क्या है? : What is the best time to visit Kangra Fort?
अगर आप कांगड़ा किला घूमने का प्लान बना रहे हैं तो आपको बता दें कि यहां पर घूमने के लिए सितंबर से जून तक का समय सबसे अच्छा हैं। मई-जून की गर्मियों के महीनों में यहां का तापमान लगभग 22-30 डिग्री सेल्सियस रहता है जो ज्यादातर पर्यटकों द्वारा पसंद किया जाता है!
7. कांगड़ा किला कैसे पहुँचे? : How to reach Kangra Fort?
फ्लाइट से कांगड़ा कैसे पहुंचे : How to reach Kangra by flight
हिमाचल प्रदेश में अगर आप हवाई मार्ग से कांगड़ा किला देखने आना चाहते हैं तो बता दें कि इसका निकटतम हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा है। जो कांगड़ा शहर से 11 किमी की दूरी पर स्थित है। गग्गल हवाई अड्डा देश के अधिकांश हवाई अड्डों के साथ अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। गग्गल हवाई अड्डे से आप कांगड़ा किला जाने के लिए ऑटोरिक्शा, टैक्सी अथवा बस की मदद ले सकते हैं। सड़क मार्ग से गग्गल हवाई अड्डे से कांगड़ा मुख्यालय की दूरी तय करने में आपको लगभग 30 मिनट का समय लगेगा!
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गग्गल हवाई अड्डा |
ट्रेन से कांगड़ा कैसे पहुंचे? : How to reach Kangra by train?
कांगड़ा किला घूमने के लिए जो भी पर्यटक रेलमार्ग (रेलगाड़ी) से यात्रा करना चाहते हैं तो उनके लिए बता दें कि, कांगड़ा शहर का अपना रेलवे स्टेशन है, जो कांगड़ा घाटी के भीतर स्थित है! लेकिन यह एक टॉय ट्रेन स्टेशन है, जिसकी वजह से अभी तक यह रेलवे स्टेशन देश के अन्य शहरों के रेल मार्ग से नहीं जुड़ा है!
कांगड़ा का निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट रेलवे स्टेशन है जो कांगड़ा से लगभग 87 किमी की दूरी पर है! पठानकोट रेलवे स्टेशन से कांगड़ा किला पहुँचने के लिए आप आसानी से टैक्सी किराए पर लेकर पहुंच सकते हैं!
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कांगड़ा रेलवे स्टेशन |
रोड मार्ग से कांगड़ा कैसे पहुंचे? : How to reach Kangra by road?
हिमाचल प्रदेश का कांगड़ा जिला सड़क मार्ग द्वारा नई दिल्ली से लगभग 450 किमी दूर है इसलिए आप नई दिल्ली से ऑर्डिनरी बस, सैमी डीलक्स या वोल्वो बस में यात्रा करके यहां आसानी से पहुँच सकते हैं! इसके अलावा कांगड़ा के पास दूसरा प्रमुख शहर चंडीगढ़ भी है जहां से आप सिर्फ 6-7 घंटे मे कांगड़ा पहुंच सकते हैं! पड़ोसी राज्यों के साथ हिमाचल राज्य सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है!
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सुनील कुमार SHANDIL
होटल मैनेजमेंट संस्थान हमीरपुर
7018822397,9625906364
🙏💞🙏
Nice information
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